सच साबित हुआ दुनिया का शक, वुहान की लैब में ही चीन की सेना ने बनाया था कोरोना वायरस!
बीजिंग: दिसंबर 2019 से ही दुनिया को एक ऐसी बीमारी के बारे में खबरें मिलने लगी थीं जो चीन में फैल रही थी। साल 2020 की शुरुआत जश्न के साथ हुई और देखते ही देखते वुहान से निकले कोरोना वायरस ने दुनिया में तबाही मचानी शुरू कर दी। वायरस चीन से निकला और दुनिया में फैलता चला गया। भारत समेत दुनिया के हर हिस्से में लॉकडाउन लगे और श्रीलंका जैसी कई अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो गईं। उस समय हर किसी को शक था कि कहीं चीन ने जान-बूझकर दुनिया में यह अशांति तो नहीं फैलाई। मगर अब इस महामारी की जांच करने वालों की तरफ से जो कुछ कहा गया है, वह इस पर मुहर लगाने के लिए काफी है। जांचकर्ताओं के मुताबिक जिस समय दुनिया कोविड-19 की चपेट में आई उससे ठीक पहले चीनी वैज्ञानिक वुहान की लैब में सबसे खतरनाक कोरोना वायरस का जानलेवा म्यूटेंट स्ट्रेन तैयार करने में लगे हुए थे।
गुपचुप खतरनाक कोरोना वायरस पर रिसर्च
द टाइम्स ने अमेरिकी जांचकर्ताओं के हवाले से जो कुछ लिखा है, उसने अब हर किसी के शक को यकीन में बदलने का काम किया है। हर कोई मान रहा था कि कोविड-19 एक प्राकृतिक नहीं बल्कि लैब में बना वायरस है। एक जांचकर्ता की मानें तो वैज्ञानिक एक ऐसे वायरस को तैयार करने में लगे थे जिसे जैविक हथियार की तरह प्रयोग किया जा सके। जांचकर्ताओं का मानना है कि जैसे ही महामारी शुरू हुई थी, उससे पहले वैज्ञानिक चीनी सेना के साथ इस पर काम कर रहे थे। वे सबसे खतरनाक कोरोना वायरस पर सीक्रेट एक्सपेरीमेंट को अंजाम देने में लगे थे। इस वजह से वुहान लैब में रिसाव हुआ था।
चीनी सेना की देखरेख में काम
ऐसा माना जा रहा है कि महामारी फैलने से पहले सर्दियों में वैक्सीन पर रिसर्च चल रही थी जो कोविड-19 वैक्सीनेशन से जुड़ी थी। ब्रिटिश और अमेरिकी मीडिया में इस बात की जानकारी विस्तार से दी गई है कि साल 2019 के अंत में वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में दरअसल क्या हो रहा था। अमेरिकी जांचकर्ताओं की एक टीम ने टॉप सीक्रेट इंटरसेप्टेड कम्यूनिकेशन और रिसर्च की मदद से अपनी जांच को पूरा किया है।
उनका कहना है कि जो कुछ भी हुआ उसके बारे में कोई भी काम पर कोई भी जानकारी पब्लिश नहीं की गई है। ऐसा इसलिए था क्योंकि इस पूरे काम को चीनी सेना के रिसर्चर्स के साथ मिलकर किया जा रहा था। चीनी मिलिट्री की तरफ से ही इन प्रोजेक्ट्स को फंड मिल रहा था। जो सबूत जांचकर्ताओं को मिले हैं, उनसे साबित होता है कि प्रयोगों पर काम कर रहे वैज्ञानिकों को नवंबर 2019 के अंत में कोविड-19 जैसे लक्षण नजर आने के बाद अस्पताल ले जाया गया था। इसके ठीक बाद ही पश्चिमी देशों में इस महामारी ने दस्तक दी थी। इस पूरी कोशिश में इससे जुड़े एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी।
वायरस में हेराफेरी का काम
एक जांचकर्ता की मानें तो वो इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थे कि यह शायद कोविड-19 ही था। वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी लैब ने साल 2003 में फैले सार्स वायरस की उत्पत्ति का पता लगाना शुरू किया था। उसे अमेरिकी सरकार की तरफ से फंडिंग मिली थी। इस लैब में अत्याधुनिक तरीके से वायरस में कैसे हेरफेर किया जाए इस टेक्नोलॉजी पर काम चल रहा था। लैब में चमगादड़ की गुफाओं से इकट्ठा किए गए कोरोना वायरस पर काम चल रहा था। शुरू में इसने सार्वजनिक किया गया और दावा किया गया कि यह वैक्सीन को विकसित करने में मदद कर सकता है।
मिला खतरनाक वायरस
साल 2016 में रिसर्चर्स ने युन्ना प्रांत के मोजियांग में एक खदान में नए जानलेवा प्रकार के कोरोनावायरस की खोज की थी। लेकिन वे इसके बारे में दुनिया को चेतावनी देने में नाकाम रहे, जिसे बाद में वुहान लैब में ले जाया गया और यहां पर सबकुछ क्लासीफाइड कर दिया गया। यह वही वायरस था जिसका संबंध कोविड-19 से था और जो महामारी से पहले अस्तित्व में आया था।