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जेडीयू को टूट का खतरा बीजेपी से अधिक आरजेडी से है? ऐसी चर्चा क्यों होने लगी है बिहार में, जानिए इनसाइड स्टोरी

पटना: बिहार में जेडीयू टूट जाएगा। यह बात बीजेपी के लोग जितने आत्मविश्वास से कह रहे हैं, उतने ही पुख्ता अंदाज में कुछ दिन पहले तक नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शामिल रहे हम (HAM) के अध्यक्ष संतोष सुमन भी बता रहे। लोजपा (आर) के अध्यक्ष चिराग पासवान और लोजपा नेता केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस का टोन भी यही है। उपेंद्र कुशवाहा ने तो जेडीयू में रहते यह बात कहनी शुरू की थी और अब भी इस बात को दोहराते रहते हैं। महाराष्ट्र में एनसीपी की टूट के बाद यह सवाल बिहार में शिद्दत से उठ रहा है। चिराग पासवान से लेकर सुशील मोदी तक सबके अपने-अपने कयास हैं।

लालू और ललन ने टूट की बात को किया खारिज

इन कयासों पर पानी फेरने के लिए जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को सामने आने पड़ा। विदेश दौरे से लौटते ही उन्होंने दो बातें स्पष्ट कीं। पहला यह कि जेडीयू में टूट की आशंका वही लोग जता रहे हैं, जिनकी आदत पार्टियों को तोड़ने की रही है। दूसरा कि अपने बयान से वे अपने समर्थकों को आश्वस्त करना चाहते हैं कि महाराष्ट्र की घटना से घबराने की कोई बात नहीं। बिहार में महागठबंधन की पार्टियां फेविकोल से चिपकी हैं। ये न अलग होंगी और न कोई पार्टी एनसीपी की तरह बिहार में टूटेगी। आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी नीतीश कुमार पर लिखी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में भी यही बोले कि बिहार को महाराष्ट्र समझने की भूल भाजपा न करे। बिहार का मिजाज दूसरा है और बीजेपी को महागठबंधन धूल चटा देगा।

HAM का नया खुलासा- RJD ही तोड़ेगा JDU को

बीजेपी ही जेडीयू को तोड़ेगी या जेडीयू खुद टूट जाएगा, ऐसा कहने वाले तो महागठबंधन से अलग अस्तित्व रखने वाले कई नेता हैं। लेकिन हम (HAM) के नेता और पूर्व मंत्री संतोष सुमन ने तो बिल्कुल अलग ढंग की बात कह कर सबको चौंका दिया है। सुमन की मानें तो जेडीयू के महागठबंधन में शामिल होते वक्त ही यह तय हो गया था कि जितनी जल्दी हो, नीतीश कुमार विपक्षी एकता की बागडोर संभालें और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी किस्मत आजमाएं। नीतीश को आरंभ में यह प्रस्ताव अच्छा लगा और उन्होंने एनडीए का साथ झटके में छोड़ दिया। वादे के मुताबिक आरजेडी ने नीतीश को सीएम तो बना दिया, लेकिन जब नीतीश के सामने अपना वादा पूरा करने का वक्त आया तो वो आनाकानी कर रहे हैं। इसलिए आरजेडी ने नीतीश को अब अल्टीमेटम दिया है कि जल्द से जल्द तेजस्वी को सीएम बनाएं और अपने को विपक्षी एकता के लिए आजाद करें। नीतीश को यह चेतावनी भी आरजेडी ने दी है कि ऐसा नहीं करने पर उनके ही विधायकों को तोड़ कर महागठबंधन तेजस्वी की ताजपोशी करा देगा।

क्या इसी भय से नीतीश अपने MLA-MP से मिले

माना जा रहा है कि नीतीश कुमार आरजेडी की धमकी से बेचैन हैं। उन्हें इस बात का आभास हो गया है कि आरजेडी उनके साथ खेल करने की तैयारी में है। भाजपा का भय तो उसी दिन से है, जब उन्होंने एनडीए छोड़ा था। यही वजह रही कि उन्होंने अपने सांसदों, विधायकों और विधान परिषद के साथियों से वन टू वन मुलाकात कर उनका मिजाज भांपने की कोशिश की है। वे उनका मन टटोलते रहे कि क्या बीजेपी या आरजेडी अगर कोई ऐसा कदम उठाती है तो उनका रुख क्या होगा। हालांकि कहा यह जाता रहा है कि नीतीश ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर विकास कार्यों की प्रगति के बारे में जानकारी ली। विपक्षी एकता प्रयासों के बारे में लोगों के रुझान पता करने की कोशिश की। पर, यह बात इसलिए गले नहीं उतरती है कि नीतीश ने इससे पहले कभी किसी विधायक या सांसद से बात करने की जहमत नहीं उठाई और अभी वे इसकी जरुरत महसूस करने लगे हैं।

तेजस्वी को CM बनने के लिए चाहिए 6 विधायक

नीतीश कुमार अपने 43 विधायकों के साथ जब एनडीए में थे तो आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में 116 विधायक थे। बिहार में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत पड़ती है। इसका मतलब यह कि तेजस्वी यादव अगर 6 विधायकों का बंदोबस्त कर लें तो वे नीतीश कुमार को अपने दम पर अपदस्थ कर सकते हैं। हालांकि इन 6 विधायकों के लिए उनके पास तीन आप्शन हैं। पहला यह कि नीतीश का साथ छोड़ कर एनडीए का हिस्सा बनने जा रहे जीतन राम मांझी की पार्टी के 4 विधायकों को अपने पाले में करें। फिर भी उन्हें दो की कमी रह जाएगी। इसलिए यह उन्हें सूट नहीं करेगा। बीजेपी को तोड़ पाना उनके लिए टेढ़ी खीर है। ऐसे में सबसे साफ्ट टार्गेट जेडीयू ही दिखता है, जिसके 43 विधायक हैं। ओवैसी की पार्टी AIMIM के 5 में से 4 विधायक टूट कर पहले ही आरजेडी में शामिल हो गए थे। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो जेडीयू रहित महागठबंधन को सत्ता के लिए सिर्फ 6 विधायकों की जरूरत है। यानी आरजेडी गठबंधन के पास अभी 116 विधायक हैं। बिहार में बहुमत का आंकड़ा 122 है। नीतीश कुमार के मौजूदा मंत्रिमंडल में अभी उनको लेकर 12 मंत्री हैं। आरजेडी इतने ही मंत्री पद का लालच देकर जेडीयू को आसानी से तोड़ सकता है।

दल-बदल कानून से बचाव का भी RJD के पास उपाय

आरजेडी अगर जेडीयू को तोड़ता है तो दल-बदल कानून की समस्या उत्पन्न हो सकती है। आरजेडी को इसकी भी परवाह नहीं है। इसलिए कि दल-बदल मामले की सुनवाई विधानसभा अध्यक्ष को करनी होती है। विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे अवध बिहारी चौधरी आरजेडी के टिकट पर ही चुन कर आए हैं। मामला उनके पास गया तो वे सुनवाई के नाम पर लंबा वक्त लगा सकते हैं। तब तक विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल ही समाप्त हो जाएगा। ऐसा सोचना महज कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि बिहार से अलग होकर बने झारखंड में ऐसा हो रहा है। बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का बीजेपी में विलय कर दिया। उन्हें बीजेपी ने विधायक दल का नेता बना दिया। उनके खिलाफ दल बदल का मामला चार साल से विधानसभा अध्यक्ष के पास है। अगले साल विधानसभा का कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा, लेकिन मरांडी के मामले में स्पीकर ने अभी तक फैसला नहीं दिया है।

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