बाढ़ पीड़ितो की किसी भी कोई परवाह नहीं सिख कमेटियां भी मदद करने को तैयार नहीं |
भोपाल. देवास जिले के ग्राम कालापाठा में बाढ़ से पीड़ित परिवारों की किसी को कोई परवाह नहीं यह गांव लगातार एक सप्ताह से विभिन्न प्रकार के समस्याओं से जूझ रहा है अगर बात करें मध्य प्रदेश की सरकार की तो सरकार के किसी भी नुमांदे ने इन पीड़ितों की कोई सुध नहीं ली सूत्रों के अनुसार मिली जानकारी के आधार पर 28 जुलाई को आई इस बाढ़ ने कई घरों को उजाड़ कर रख दिया है तभी से आज तक सरकार और प्रशासन ने किसी भी प्रकार की कोई सहायता नहीं पहुंचाई है, यहां बता दें यह गांव आधा कांग्रेस को सपोर्ट करता है और आधा भारतीय जनता पार्टी को यह दोनों राजनीतिक पार्टियों ने यहां के बाढ़ पीड़ित परिवारो की किसी भी प्रकार की कोई शासकीय योजना का लाभ तक नहीं पहुंचाया है। भोपाल से प्रकाशित खबर खालसा डिजिटल न्यूज़ चैनल की टीम ने रिपोर्टिंग के समय जब कालापाठा के बाढ़ पीड़ित परिवारों से जानकारी जुटाई तब पता चला कालापाठा के सरपंच पति सुनील सिंह बावरी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने तत्काल क्षेत्रीय विधायक से संपर्क साध कर बाढ़ से पीड़ित परिवारों की समस्याओं से अवगत कराया क्षेत्रीय विधायक ने गंभीरता को समझते हुए कालापाठा पहुंचकर बाढ़ पीड़ितों की समस्या को जाना और उन्होंने क्षेत्र के तहसीलदार एसडीएम से संपर्क साधा एवं सभी को यहां की जानकारी दी सरपंच सुनील बावरी ने क्षेत्र के विधायक से अनुरोध कर सभी बाढ़ पीड़ितों के पारिवारिक मेंबर के हिसाब से अनाज बांटने की मुहिम शुरू की जिसमें जिनके परिवार के मेंबर ज्यादा है उन्हें 1 क्विंटल अनाज अथवा जिनके परिवार मेंबर कम है उन्हें 50 किलो अनाज की तत्काल व्यवस्था कराई जिन परिवारों का बाढ़ में सब कुछ बह चुका था उनके लिए सरपंच द्वारा तत्काल गद्दे तकिए चादर के अलावा लंगर की भी सेवा निभाई गई इसके अलावा सरकार की कोई भी योजना का कोई भी लाभ आज तक नहीं पहुंचाया गया। वही 1 जुलाई को कांग्रेस पार्टी के नेता दीपक जोशी भी कालापाठा पहुंचे और उन्होंने पीड़ितों का हाल जाना उन्होंने कहा जिन परिवारों के घर पूरी तरह टूट गए हैं उन परिवारों को सरकार की योजना द्वारा कुटिया दिलाने का प्रयास करेंगे एवं बाढ़ पीड़ितों के लिए जो भी योजनाएं सरकार की होती हैं उन योजनाओं का उन तक कैसे लाभ पहुंचाया जाए उसके लिए प्रयास भी करेंगे, इसके अलावा यहां के बाढ़ पीड़ित परिवारों को किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली।
अब हम बात करें सिख पंथ की 28 जुलाई से आज तक पूरा एक सप्ताह गुजर गया मगर सिख पंथ का कोई भी सिख नेता वह चाहे कांग्रेस का हो या भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी अन्य दल का हो अभी तक किसी ने भी इनकी समस्या जानने का भी प्रयास नहीं किया है, बाढ़ से पीड़ित सिखलीगर सिख समाज की समाज के ही लोगों ने सुध नहीं ली। वैसे तो जब राजनीतिक पार्टियों का चुनाव हो तो बहुत सारे ऐसे सिख नेता इस समाज के इर्द-गिर्द मक्खियों की तरह भिन-भिनाते नजर आ जाएंगे लेकिन आज बाढ़ से पीड़ित इन परिवारों की तकलीफ को समझने वाला कोई भी सिख नेता अभी तक इनके बीच नहीं पहुंचा है, इंदौर भोपाल में कितने सारी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियां हैं इन कमेटियों ने भी इनकी सुध नहीं ली , पीड़ित सिखलीगर सिख समाज ने मीडिया के माध्यम से अपील की, गुहार लगाई, और मदद भी मांगी है, लेकिन सिख पंथ के समाज की बात करने वाले, धर्म की बात करने वाले, सिख धर्म के एकता की बात करने वाले, सिख पंथ की ठेकेदार बनने वाले किसी भी एक व्यक्ति ने ना ही किसी प्रकार की कोई सेवा पहुंचाई और ना ही इनकी समस्याओं को जानने का प्रयास किया। अब सवाल है जब नेपाल में भूकंप आया तब सिख वहा पहुचे, कोरोना महामारी आई तब सिख सामने आए, जम्मू कश्मीर में विपत्ति आई तब सिख वहा पहुंचे, उत्तराखंड में बाढ़ आई तब सिख वहां पहुंचे, इतना जी नहीं लंगर चलाएं ऑक्सीजन सिलेंडर बांटे गुरुद्वारेपरिसरो में बने बिल्डिगों में अस्पताल बना दिए गए हर तरह की सेवाऐ चलाई गई आज मध्य प्रदेश के कई गुरुद्वारे हैं जहां फ्री लंगर सेवा चलाई जा रही है, लेकिन आज इसी सिख पंथ को क्या हो गया जो अपने ही पंथ की सिखलीकर सिख समाज का हाल जानने की भी फुर्सत नहीं सेवा तो बहुत दूर की बात है। क्या कारण है क्या मजबूरी है इंदौर और भोपाल की प्रबंधक कमेटियों की जो कालापाठा के बाढ़ पीड़ित सिखलीगर सिखसमाज की मदद नहीं करना चाहते उनके लिए सेवा नहीं चलाना चाहते। इस समाज का दुर्भाग्य है कि यह सिखलीगर सिख समाज हैं शायद इसलिए सरकार का इनकी तरफ कोई ध्यान तो होता नहीं हैं और अब सिख पंथ के मुखियों,प्रधानो का भी इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं है, क्या यह सिख नहीं है क्या यह गुरु साहब को नहीं मानते है। इसी समाज के भाई मेहताब सिंह थे इसी समाज के भाई बचित्तर सिंह थे इसी समाज के भाई हरि सिंह नलवा थे जिन्होंने अफगानिस्तान तक महाराजा रणजीत सिंह का राज कायम करवा दिया था लेकिन आज यह समाज इतनी मजबूर है कि उनकी मदद करने को खुद सिख कमेटियां भी तैयार नहीं आखिर फिर किसकी मदद करेंगी यह कमेटियां।