बैलून बेचने वाले ने खड़ी कर दी सबसे बड़ी टायर कंपनी, आज एक शेयर खरीदने के लिए कम पड़ जाएगी सैलरी
नई दिल्ली: टायर बनाने वाली कंपनी एमआरएफ (MRF) का नाम तो आपने सुना ही होगा। भले ही आपने अपनी गाड़ी में लगे इस कंपनी के टायर पर गौर न किया हो, लेकिन सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली जैसे स्टार क्रिकेटर्स के हाथों में MRF की बैट जरूर देखी होगी। टायर बनाने वाली इस कंपनी ने मंगलवार को शेयर बाजार में इतिहास रच दिया। एमआरएफ के शेयर (MRF SHARES) मंगलवार को 1 लाख रुपये का आंकड़ा पार कर गए। एक लाख का एक शेयर, यानी इस कंपनी का एक शेयर खरीदने के लिए आपकी सैलरी भी कम पड़ जाएगी। मंगलवार को बॉम्बे स्चॉक एक्सचेंज पर एमआरएफ के शेयर में 1.37 फीसदी की तेजी आई और इसके शेयर 100300 रुपये पर पहुंच गए। जिस इतिहास को रचने से मई में यह कंपनी चूक गई थी, उसे मंगलवार को पूरा कर लिया। 8 मई 2023 को 66.50 रुपये के अंतर से कंपनी 1 लाख का आंकड़ा छूने से रह गई थी, लेकिन आज टायर बनाने वाली इस कंपनी ने रिकॉर्ड बना दिया।
1 साल में 45 फीसदी का उछाल
चेन्नई बेस्ड एमआरएफ कंपनी के टोटल 4241143 शेयर हैं जिसमें से 30,60312 शेयर पब्लिक शेयर होल्डर्स के पास है। 11,80,831 शेयर कंपनी के प्रमोटर्स के पास हैं। कंपनी के एक शेयर में पिछले एक साल में 45 फीसदी से अधिक का उछाल आया है। अगर एक साल में कंपनी के शेयर की तुलना करें तो 13 जून 2022 को बीएसई पर MRF के शेयर प्राइस 68561.25 रुपये थी। एक साल बाद 13 जून 2023 को बीएसई पर MRF शेयर का प्राइस 100300 रुपये पर पहुंच गया।
कैसे हुई कंपनी की शुरुआत
आप में से बहुत कम लोग MRF का फुलफॉर्म जानते होंगे। एमआरएफ यानी मद्रास रबर फैक्ट्री । साल 1946 में एक बैलून बेचने वाले एक शख्स ने इसकी नींव रखी थी। के. एम मैमन मापिल्लई ( K.M. Mammen Mappillai) पहले गुब्बारा बेचते थे। केरल में एक ईसाई परिवार में जन्मे मापिल्लई के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी की लड़ाई के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पिता के जेल जाने के बाद पूरी जिम्मेदारी मापिल्लई के कंधों पर आ गई। घर में आठ भाई-बहन थे। परिवार चलाने के लिए उन्होंने सड़कों पर गुब्बारे बेचने का काम शुरू किया। 6 साल तक गुब्बारा बेचने के बाद साल 1946 में उन्होंने रबर का व्यापार करने का फैसला किया।
बच्चों के लिए खिलौना बनाने की फैक्ट्री
मापिल्लई ने इसके बाद बच्चों के लिए खिलौने बनाने का काम शुरू किया। साल 1956 के आते-आते उनकी कंपनी रबड़ के कारोबार की बड़ी कंपनी बन चुकी थी। धीरे-धीरे उनका झुकाव टायर उद्योग की ओर बढ़ा। साल 1960 में उन्होंने रबर और टायरों की एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई। बाद में कारोबार बढ़ाने के लिए उन्होंने अमेरिका की मैन्सफील्ड टायर एंड रबर कंपनी के साथ समझौता किया। साल 1979 तक कंपनी का कारोबार देश-विदेश में फैल चुका था। इसी के बाद कंपनी ने अमेरिकी कंपनी मैन्सफील्ड ने एमआरएफ में अपनी हिस्सेदारी बेच दी और कंपनी का नाम एमआरएफ लिमिटेड कर दिया।
देश की नंबर 1 कंपनी
साल 2003 में 80 साल की उम्र में मापिल्लई का निधन हो गया। उनके बाद बेटों ने कारोबार को संभाला और जल्द ही उनकी कंपनी नंबर 1 बन गई। टायर बनाने वाली कंपनी ने स्पोर्ट्स में काफी रुचि दिखाई। MRF रेसिंग फॉर्मूला 1, फॉर्मूला कार, MRF मोटोक्रॉस, MRF , MRF बैट जैसे सेक्टर में कंपनी नंबर 1 बनी। देश-विदेश में कारोबार करने वाली इस कंपनी की अधिकांश मैच्युफैक्टरिंग यूनिट केरल, पुडुचेरी, गोवा, चेन्नई और तमिलनाडु में है। कंपनी टायर, ट्रेड्स, ट्यूब्स, कन्वेयर बेल्ट्स, पेंट्स, खिलौने के अलावा स्पोर्ट्स गुड्स बनाती है। साल 2007 में कंपनी ने 1 अरब डॉलर टर्नओवर को पार कर लिया था। नाम से अधिकांश लोग इसे विदेशी मान लेते हैं, लेकिन इस कहानी को जानने क ेबाद आप जान गए होंगे कि ये कंपनी पूरी तरह से देसी है।