टीम इंडिया का पहला विदेशी प्लेयर, जो आया तो था पढ़ाई करने और बन गया देश का धाकड़ क्रिकेटर
नई दिल्ली: सिर्फ दुनिया ही तेजी से नहीं बदल रही बल्कि हमारा देश भी भयंकर रफ्तार से तरक्की कर रहा है। जनसंख्या ही ले लीजिए, चीन को पछाड़कर भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने की कगार पर खड़ा है! टोटल पाप्यूलेशन, 1.428 अरब। इसे ऐसे समझिए कि न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और जिम्बाब्वे जैसे कई क्रिकेट प्लेइंग नेशन हमारी दिल्ली-मुंबई की कुल जनसंख्या से छोटे हैं। कई सौ करोड़ की भीड़ में सिर्फ 11 या 15 लोगों में चुना जाना अद्भुत अहसास होता है। ऐसा ही कमाल किया था वेस्टइंडीज के उस इकोनॉमिक्स स्टूडेंट ने जो बाद में भारतीय क्रिकेट टीम की जान बन गया।
भारतीय मूल के कैरेबियाई
ये कहानी है, टीम इंडिया के पूर्व बेहतरीन ऑलराउंडर और जबरदस्त फिल्डर रहे रॉबिन सिंह की। जिनका मूल नाम रवीन्द्र रामनारायण सिंह है। 14 सितंबर 1963 को वेस्टइंडीज के ट्रिनिडेड में जन्में रॉबिन 60 साल के हो चुके हैं। भारतीय मूल के होते हुए उनके पूर्वज बीते 150 साल से वेस्टइंडीज में रह रहे थे। रॉबिन की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। वेस्टइंडीज से भारत और फिर भारत की क्रिकेट टीम में आना इतना आसान भी नहीं था, उन्हें संघर्ष का लंबा दौर देखना पड़ा है।
19 साल की उम्र में आए भारत
वैसे तो रॉबिन ने क्रिकेट की शुरुआत बचपन में ही कर ली थी वह ट्रिनिडेड में ही ट्रेनिंग किया करते थे। वेस्टइंडीज में स्कूल और क्लब लेवल पर क्रिकेट खेलते थे। रॉबिन का वेस्टइंडीज से भारत आने का सफर शुरू करते है। दरअसल, 80 के दशक में भारत से हैदराबाद ब्लू नाम की कोई टीम टूर्नामेंट खेलने वेस्टइंडीज गई थी। तब रॉबिन सिंह ट्रिनिडेड की ओर से उस मैच में खेले थे। उनके बढ़िया प्रदर्शन को देखते हुए अकबर इब्राहिम नामक शख्स ने उन्हें भारत आने का निमंत्रण दिया। महज 19 साल की उम्र में 1982 वह मद्रास आ गए।
कॉलेज से टीम इंडिया का सफर
मद्रास में रॉबिन ने यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास में इकोनॉमिक्स की पढ़ाई शुरू की। एजुकेशन के दौरान ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया। इसके बाद तो वह चेन्नई के होकर ही रह गए। उन्होंने भारत में क्रिकेट खेलना तो शुरू कर दिया, लेकिन नागरिकता काफी देर से मिली। 1989 में जब उन्हें भारत की नागिरकता मिली, तभी उनका सिलेक्शन वेस्टइंडीज टूर के लिए टीम इंडिया में भी हो गया।
टीममैन थे रॉबिन सिंह
रॉबिन सिंह ने इंटरनेशनल करियर का आगाज अपने पूर्व देश वेस्टइंडीज के खिलाफ ही किया, लेकिन उस सीरीज में उन्हें सिर्फ दो मैचों में ही मौका मिला था। इसके बाद अगला मौका मिलने में सात साल लग गए। जब 1996 में टाइटन कप में उन्हें दोबारा आजमाया गया। साल 2001 तक रॉबिन लगातार टीम का हिस्सा रहे। वह चुनिंदा भारतीय खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्हें उनकी फील्डिंग की दुनिया दीवानी है। टीम इंडिया के लिए उन्होंने 136 वनडे खेले।