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मुसलमानों की जाति में बीजेपी तलाश रही वोट बैंक, नीतीश-लालू को उन्हीं के हथियार से मात देने का प्लान

ओमप्रकाश अश्क, पटना: आजादी के बाद से अब तक कोई भी दल ऐसा नहीं रहा, जिसे अकेले 50 प्रतिशत या इससे अधिक वोट मिले हों। पर, वह पार्टी देश पर राज करती रही। भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 31 तो 2019 में 37 प्रतिशत वोट मिले थे। पर, सरकार बीजेपी ने ही बनाई। कांग्रेस या गैर भाजपा दलों के लोग अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि इतना कम वोट पाकर किसी दल का सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। नैतिकता के आधार पर यह बात सच हो सकती है, लेकिन संवैधानिक प्रावधान ही ऐसे हैं तो कोई क्या कर सकता है। बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान की बात-बात में दुहाई देने वाले विपक्ष के लोगों को यह बात अच्छी तरह पता है। शायद इसीलिए अब बीजेपी को बिहार में मुसलमानों की जाति में वोट बैंक नजर आने लगा है। इसीलिए अब पसमांदा मुसलमानों पर सत्ता और विरोधी दोनों ही डोरे डाल रहे हैं।

आजादी से अब तक कांग्रेस को भी नहीं मिले 50% वोट

भाजपा विरोधियों को यह भी पता होगा ही या पता न भी हो तो पता करना कोई कठिन काम नहीं। जब 1951-52 में आम चुनाव हुए तो जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वालीमें कांग्रेस पार्टी को करीब 45 (44.99) प्रतिशत ही वोट मिले थे। उसके बाद के चुनावों में भी कांग्रेस की यही स्थिति रही। कांग्रेस को 1957 में 47.78 और 1962 में 44.72 प्रतिशत ही वोट मिले थे।

सहानुभूति लहर में भी कांग्रेस को 50% से कम वोट मिले

साल 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो पूरे देश में उनके बेटे राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति की लहर थी। कैडर आधारित पार्टियों को छोड़ कर पूरे देश में राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति थी। इसके बावजूद उस साल हुए चुनाव में कांग्रेस को 46.86 प्रतिशत वोट ही मिले थे। हालांकि राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत मिल गया था। यह भी सच है कि कांग्रेस के वोटरों में हर जाति-बिरादरी के लोग शामिल थे। यानी हिन्दू-मुसलमान और सवर्ण, दलित और ओबीसी के वोट भी तब कांग्रेस को मिला करते थे।

भाजपा अब मुसलमानों में जनाधार बढ़ाने की तैयारी में

भाजपा यह जान गई है कि राष्ट्रवादी-हिन्दुत्वादी छवि के बावजूद तकरीबन 80 प्रतिशत हिन्दुओं का समग्र वोट उसे कभी नहीं मिलने वाला है। जातीय आधार पर बनी क्षेत्रीय पार्टियां हिन्दू वोटों का ऐसे विभाजन करती हैं कि कई बार मुस्लिम वोट निर्णायक हो जाते हैं। बिहार में आरजेडी, यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे कई दल हैं, जो जाति के आधार पर बने हैं। समय-समय पर उनके रुख में थोड़ा परिवर्तन हुआ भी, लेकिन उनके जातीय समीकरण ही बुनियाद में थे। इसलिए हिन्दू वोटों का बंटवारा आसानी से हो जाता है। मुस्लिम वोटों के साथ अब शायद ही ऐसा हो पाता है। मुस्लिम हितों को लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने एआईएमआईएम बनाई है। इसके बावजूद उनके उम्मीदवारों को कामयाबी नहीं मिलती। साल 2014 से ही मुस्लिम कम्युनिटी की स्थिति यह हो गई है कि वह गैर भाजपा किसी मजबूत विपक्षी दल के उम्मीदवार को वोट तो दे देता है, लेकिन बीजेपी की ओर झांकता भी नहीं। गुजरात दंगों के नरेंद्र मोदी पर लगे दाग अभी तक धुल नहीं पाए हैं, इसलिए मुसलमान भाजपा से भड़कते रहे हैं। हिन्दू वोटों का बंटवारा जाति के आधार पर कई दलों में हो जाता है। नतीजतन हिन्दुत्व और राष्ट्रीय सोच रखने वाली भाजपा वोट शेयर के मामले में दो लोकसभा चुनावों से 30-35 प्रतिशत के बीच ही घूमती रही है।

अब पसमांदा मुसलमानों को लुभाने में लगी है भाजपा

भाजपा के बारे में मुसलमानों की धारणा जो रही हो, पर इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि ऐसा नहीं है कि भाजपा ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया है। उनकी उपेक्षा भाजपा शासन में हो रही है। सच जानना हो तो नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा मुसलमानों के हित में किए गए कुछ कामों को देख लेना चाहिए। 2014 में सत्ता संभालते ही नरेंद्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने मुसलमानों के लिए बजट की राशि भी बढ़ा दी थी। तीन तलाक का दंश झेल रही मुस्लिम महिलाओं को कानून बना कर उन्हें बराबरी का हक दिलाया। पीएम मोदी ने मुसलमानों के लिए सऊदी अरब से बातचीत कर हज का कोटा तो बढ़वाया ही, यात्रा पर लगने वाली जीएसटी भी 18 से घटा कर 5 प्रतिशत कर दिया। 6 लाख से अधिक वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के कागजात का डिजिटलीकरण मोदी सरकार ने कराया।
PM मोदी ने मुसलमानों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं

मुस्लिम छात्रों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की उड़ान योजना काफी कारगर रही है। प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे मुस्लिम युवाओं को इस योजना से काफी लाभ मिला है। इसके तहत सरकार ने फ्री कोचिंग की सुविधा मुहैया कराती है। घर बैठे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले मुस्लिम युवाओं को इस योजना के तहत 1500 रुपए और बाहर रह कर पढ़ाई करने वाले बच्चों को 3000 रुपए सरकार देती है। मुस्लिम लड़कियों में भी उच्च शिक्षा की ललक बढ़ाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने शादी शगुन योजना शुरू की। इसके तहत ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने वाली मुस्लिम लड़कियों को 51000 रुपये की राशि शादी शगुन के तौर पर केंद्र सरकार देती है। उस्ताद योजना के तहत केंद्र सरकार ने मुस्लिम कारीगरों को और ज्यादा कुशल बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने का काम किया है। कौशल विकास योजना के तहत ट्रेनिंग देने का काम किया जाता है। सीखो और कमाओ योजना मुस्लिम युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू की गई है। इस योजना में प्रशिक्षित 75 प्रतिशत मुस्लिम युवाओं को रोजगार देने की अनिवार्यता भी रखी गई है। नरेंद्र मोदी सरकार की ईदी योजना के तहत 5 करोड़ मुस्लिम युवाओं को ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति’ दी जा रही है। योजना का लाभ उठाने वालों में 50 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएं होती हैं।

BJP की नजर अब पसमांदा मुसलमानों को साधने पर

भारतीय मुसलमानों की तकरीबन 20 फीसद आबादी में 80 प्रतिशत के करीब पसमांदा मुसलमान हैं। हिन्दुओं की तरह मुसलमानों में भी कई तरह का विभाजन है। सवर्ण मुसलमानों में शेख-पाठान आते हैं तो जुलाहा, धुनिया, कसाब जैसी मुसलमानों की कई उपजतियां पसमांदा यानी पिछड़े मुसलमानों की श्रेणी में आती हैं। भाजपा का मानना है कि अल्पसंख्यक हितों के लिए जितना काम मोदी सरकार ने किया है, शायद ही किसी दल ने अब तक किया हो। इसीलिए अब वह मुसलमानों में भी बहुसंख्यक पसमांदा को रिझाने के काम में लगी है। यूपी के निकाय चुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ ने 400 से अधिक मुसलमानों को भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया। यह भाजपा का एक प्रयोग था, जिसमें वह कामयाब हो गई है।

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