मुख्यमंत्री लगाएं आम के पौधे, लकड़ी माफिया काटे आम के बडे़ पेड़
आर. एस. सिंह खालसा
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भोपाल . मध्य प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी नियमित कार्य शैली मैं प्रति दिनचर्या की शुरुआत करते हुए सबसे पहले राजधानी में कहीं ना कहीं वृक्षारोपण करते हैं उसके पश्चात फिर अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपने प्रशासनिक कार्य में लग जाते हैं। मुख्यमंत्री चौहान वन और वन प्रणीयो की सुरक्षा के लिए काफी गंभीर हैं और वे तरह-तरह के योजनाएं बनाकर उन्हें सुरक्षा देने के लिऐ निरंतर प्रयास में जुटे हैं।
दूसरी तरफ उन के सरकार का एक विभाग जिसे वन विभाग के नाम से जाना जाता है, उस विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी एवं उनके अधीनस्थ रेंजर,डिप्टी रेंजर,वनपाल,नाकेदर, और अस्थाई वनकर्मी मध्य प्रदेश के जंगल माफियाओं के साथ तालमेल बनाकर वन्यजीवों का शिकार एवं जंगल को कटवाने का घोर अपराध को अंजाम तक पहुंचा रहे। जिसके कई प्रमाण भी देखे गए हैं जैसे लोकायुक्त की टीम द्वारा रिश्वत लेते रंगे हाथ पकडाना दूसरा सागौन की सिल्लियों से भरे हुए वाहन को छोड़ देने के आदेश देते हुए ऑडियो और वीडियो का वायरल होना , जोकि इन वन अधिकारियों एवं वन कर्मचारियों के भ्रष्टाचारी होने का ठप्पा लगा देती हैं।
ऐसे में शुद्ध पर्यावरण वन एवं वन प्राणियों की लिए चिंतित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सुशासन स्थापना में सैध लगा रहे, जिसका हाल ही मैं कुछ माह पूर्व अखबारों में प्रकाशित हुई खबरों के आधार पर राजधानी के वन मंडल अधिकारी के संज्ञान में आते ही कड़े कदम उठाए गए एवं उनके मार्गदर्शन में उन्हीं के अधीनस्थ उड़नदस्ता भोपाल ने सर्च पेट्रोलियम करते हुए कई अवैध लकड़ी से भरे वाहनों को जप्त कर आरोपियों के ऊपर कानूनी कार्यवाही की गई। हालांकि बाद में उक्त बहनों को मामूली सा जुर्माना कर छोड़ दिया गया। जिसमें कुछ गीले आम की लकड़ी के लठ्ठो से भरे हुए कुछ ट्रक भी थे जोकि निरंतर इंदौर के बड़े-बड़े लकड़ी व्यापारियों तक गीले आम की लकडि़यो को पहुचा रहें थे।
मध्य प्रदेश के मंडला एवं सिवनी जिले से भारी मात्रा में बगैर राजस्व के परमिशन एवं कई बार बगैर टीपीके आम के लठ्ठो को इंदौर तक पहुंचाया जा रहा था।
इतना ही नहीं कमाल की बात तो यह है, कि जिन आम के लठ्ठो से भरे ट्रकों को उड़नदस्ता भोपाल ने पकड़ा था उस माल की टीपी जलाऊ लकड़ी की बनाई गई थी उन ट्रकों में गीले आम के लट्ठे पाए गए थे। एक ट्रक में 70 एवं दूसरे ट्रक में 80-90 लट्ठों के आसपास भरे हुए थे जिसकी टीवी जलाऊ लकड़ी की थी।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सिवनी जिले की रेंज के कुछ रेंजर और डिप्टी रेंजर इतने भ्रष्ट हैं जो टीपी बनने से पहले सत्यापन के समय अपने निजी स्वार्थ के चलते मोटे मोटे गीले आम के लट्ठों को जलाऊ बना देते हैं और वही खाकी वर्दी को पहने भ्रष्टाचारी रेंजर अपने ही विभाग से गद्दारी कर जलाऊ लकड़ी की डीपी बनाकर गीले आम के लट्ठों से भरे ट्रकों को पास करवा देते हैं। सूत्र ने जानकारी देते हुए यह भी बताया सिवनी जिले से इंदौर तक के सफर में कई रेंजर, डिप्टी रेंजर एवं नाकेदारो को अच्छी खासी मोटी रकम दी जाती है। अब रहा सवाल स्थाई वन कर्मियों का यह तो गिद्ध की तरह होते हैं जहां कोई जानवर मर जाता है तो गिध्द उस जगह पर मंडराते हुए पहुंच ही जाते हैं, यही हाल वन विभाग के आस्थाई वन कर्मियों का है गश्ती के दौरान लकड़ी से भरे वाहनों को देखते ही उन पर झपट जाते हैं और ड्राइवर से 1000से2000 हजार रुपये लेकर ड्राइवर को सैल्यूट मारते हुए ट्रकों को पास करा कर अपने ही विभाग से गद्दारी का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेते हैं।
अब आ जाइए रेंजर , डिप्टी रेंजर के समर्पण और वफादारी के किस्से पर, नाम ना छापने कि शर्त पर इंदौर के एक लकड़ी व्यापारी और वन विभाग के कर्मचारी ने जानकारी देते हुए यह भी बताया सिवनी से लेकर इंदौर तक जितने भी रेंज पढ़ते हैं उनके रेंजरो को भिन्न भिन्न प्रकार के अवैध लकड़ी से भरे वाहनों की कीमतें भी निर्धारित है जिसमें, बोलेरो पिकअप के 4 हजार, आईसर ट्रक के 6हजार,10 चक्का ट्रक 10हजार, 12 चक्का ट्रक के 12000 हजार रुपये निर्धारित किऐ गये है, जैसा वाहन वैसी कीमत।
अब मजे की बात और भी है 20 से 30 हजार रुपए की तनख्वाह पर काम करने वाले वन कर्मचारी के जल्वे देखिए गले में सोने की चैन हाथों की उंगलियों पर सोने की मोटी मोटी अंगूठियां, लग्जरी कारें, बोलोरो , स्कॉर्पियो बुलेट , जैसे महंगे वाहनों की सवारियां उस पर महंगी अंग्रेजी शराब एवं देसी मुर्गों के शौक ..? करने के पीछे की कहानी सिर्फ इतनी सी है अपने ही विभाग को धोखा देकर लकड़ी माफियाओं से सांठगांठ करके मध्यप्रदेश के हर जिलों की आरा मशीनों पर भारी पैमाने पर माल डंप करवाना हैं।
किसी ने खूब कहा हैं ईमानदारी और मेहनत से सिर्फ आदमी दो वक्त की रोटी खा सकता है, बड़े-बड़े मकान बड़ी-बड़ी गाड़ियां नहीं बना सकता।
अब सवाल यह.? है कहीं यह कहावत इन कर्मचारियों पर भी सटीक तो नहीं बैठती अगर ऐसा नहीं है तो विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का इस ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं आखिर थोड़े से तनख्वाह वाले वनकर्मचारियों के इतने महंगे शौक कैसे, कहीं ऐसा तो नहीं के सारे कुएं में ही भांग घुली हो।
वैसे तो राम भला करे राजधानी भोपाल के वन मंडल अधिकारी आलोक पाठक एवं एसडीओ आर. एस. भदौरिया का जिनकी सख्ती बरतने के कारण कुछ परसेंट बगैर टीपी के लकड़ियों का परिवहन होने पर रोक लग सकी हैं एवं मंडला और सिवनी जिले से गीले आम के लठ्ठो का अवैध तरीके से परिवहन करने पर कुछ विराम लगा हैं हालांकि जलाऊ लकड़ी की टीपी पर परिवहन होने वाले गीले आम के लठ्ठो पर पूरी तरह विराम तो नहीं लगा है, लेकिन शिवनी मंडला से इंदौर तक का खेल आज भी चल तो रहा हैं मगर चूहे बिल्ली के खेल की तरह। वही भोपाल का उड़नदस्ता लगातार गश्ती कर रहा है लेकिन एक हद तक आखिर उसमें भी तो इंसान ही हैं कहीं ना कहीं 24 घंटे की इस सरकारी ड्यूटी में थोड़ा उन्है भी आराम की आवश्यकता तो होती है मगर जैसे ही उड़नदस्ता भोपाल ने थोड़ी भी आंख बंद की और लकड़ी तस्करो के वाहन हुए फुर्र। अब सवाल यह है कि ऐसे में मुख्यमंत्री के द्वारा किए गए वृक्षारोपण की सुरक्षा का क्या होगा मान लो एक तरफ राजधानी के वृक्षारोपण की सुरक्षा तो किसी तरह हो भी गई लेकिन लकड़ी माफियाओं द्वारा बगैर राजस्व के परमिशन और वन विभाग की बिना टीपी के जो हरे भरे पेड़ों को काटकर प्रदेश की आरा मशीनों पर डंप किए जा रहा हैं, आखिर उन बड़े-बड़े हरे भरे पेड़ों के सुरक्षा कैसे की जाएगी यह चिंता का विषय है।